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Saturday, April 10, 2010

जाने क्यों

जाने क्यों खुद से खफा खफा रहता हूँ ,
भरी महफ़िल से जुदा जुदा रहता हूँ !
अब तो लगता है आदत सी होगई
आप कि यादो में खो जाना ,
कि भीढ़ से ज्यादा सूनापन हमे भाति है !
आप के ख्वाबो खयालो से दिल में ऐसी
लहर उठती है जैसे बस पल भर के लिए सागर किनारे को साहिल टकराके भीगने कि ख़ुशी का एहसास होने से पहले भीना सूना छोड़ जाती है !
शायद इसलिए खुशियों के कलियों के महक से ज्यादा गम के गलियों से गुजरना अच्छा लगता है !
क्यों कि खुशिया हसी के साथ कम हो जाती है , लेकिन ग़म दिल कि गहराईयों में बस के हमसफ़र बनके
उनके एहमियत का मीठा एहसास हमेशा देती है !
अब तो जिंदगी में एक आस के सिवा कुछ ना बचा कि ,
इन अँधेरी राहों में कभी ना कभी चांदनी के रौशनी से भरी एक दिशा दिख जाए जो उन्हें हमारी मंजिल बना दे !।
Written by: Sudhir

2 comments:

  1. जाने क्यों खुद से खफा खफा रहता हूँ ,
    भरी महफ़िल से जुदा जुदा रहता हूँ !>


    jab dil apna nahi rahta tab shaayad aisa hi lagta hai. sundar aur naajuk ehsaas

    shubh kamnayen

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  2. बहुत अच्छी प्रस्तुति।

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