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Wednesday, October 20, 2010

बरसात

बरसात की रात है ,
अकेलापन का साथ है...
बूंदे मुझ को बहका रही है
चाहत तेरी जगा रही है  लेकिन तू है की सता रही है !

जी चाहता है कोई जुर्रत में करलू ,
गुलाबी चेहरे से गुस्थाकी करलू ,
तेरे इशारे  को में इजाजत समझू
श्याम ढल गयी है अब तो शरारत करलू .

तेरे पीठ पीछे कोई साजिश में करू  ,
कभी आके अचानक बाहों में जकड लू
इतना जोर दूं की हमारे  बीच हवा ना घुस पाये
और तुम्हे सांस लेना मुश्किल हो जाए  ,
पर मेरे असर से धड़कने तेज हो जाए !

पैरो  में तेरे पायल में बन जाऊं
और चनकने के बदले कदमो को चूमता रह जाऊं
ऐसे काटलूं  की चलना मुश्किल हो जाए ,
पर मेरे ज़हर से  तेरे  चाल को पंख  लग जाए !

अगर प्यार है तो अपने गले का गहना बनालो
और मुझे हर वक़्त अपने सीने से लगालो .
ताकि तेरे आहट तले मेरे साँसे चले
और तेरे धडकनों तले मेरी ज़िन्दगी चले....
अपने बीच प्यार य़ू ही पलता रहे
जब तक सूरज सागर के गोद में ढलता रहे....

Written by: Sudhir

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