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Thursday, July 1, 2010

जनम दिन

तेरे बिना तन्हाईयाँ ,
गले लगी है रुसवाईयाँ!
बेखुदी की इम्तेहान ,
बेरुखी  छाई हर जगह !

ज़िन्दगी जाने कहा खो गयी तेरे बिना ,
हर घडी हर दिशा ढूँढता हूँ तेरा निशाँ !
आशिकी  कहती है तू है जाने जहा ,
तिश्नगी कहती है तू कहा में कहा!

बदनसीबी  के बुलंदी पर इंतज़ार के ईट बिछाये जा रहा हूँ
इश्क का इमारत बनाने के ख्वाभ से
लेकिन तेरे ज़िन्दगी में मुझे जगह नसीब नहीं हुई...

सागर किनारा करता है इशारा ... चाँद का चमक चाहे जितना भी झलके,
और प्रतिबिम्भ दिखे सागर पे फिर भी लहर छु नहीं सकते अम्बर को...
मेरा दिल भी कुछ ऐसा ही कहता है ..
मेरा सांस और आस तुझ से जुडी है फिर भी तू मुझ से जुदा है ,
दिल चाहे जितना भी धडके तेरी यादों के सहारे
फिर भी तू मेरी ज़िन्दगी नहीं बन सकी ..

ए खुदा आज का दिन तुने मुझे ज़िन्दगी दी है ,
लेकिन हर दिन कोई मुझे मौत दे रहा है .
फिर भी जिए जा रहा हूँ जैसे कोई गुनाह किये जा रहा हूँ .
रोज अपना माथम मना रहा हूँ
आज तो अपना जन्मदिन मना लूं
ख़ुशी का एक बूँद पी लूं
 जी भर के आज तो  जी लूं
और तुझे शुक्रिया अदा करलूं
क्यों की तू ने मुझे सिर्फ ज़िन्दगी ही नहीं उसके हर पल में उनके यादों का अनमोल तोफा  दिया है....

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