मेरे हर सांस और आहट में वोह शामिल है ,
दिल में उनकी यादों का महफ़िल है !
ज़िन्दगी एक सपने की तरह जिए जा रहा हूँ ,
की अपने अस्तित्व से खुद अजनबी बन गया हूँ !
दिल एक आईना बनगया जिस में हर वक़्त उनका
चेहरा दिख रहा था ...
उनको भूलने के लिए दिल को चूर कर दिया
फिर भी हर टुकड़े में उनका नूर पाया ...
खुशियों का पता भूल गया और
ग़म के राहों में गुमराह होगया !
अब तो अपने आप में खुद को खोज रहा हूँ
अगर मिल भी गया तो खुद को शायद तनहा पाउँगा
ऐसे में अपने आप को संभालू कैसे ?
अजीब है यह ज़िन्दगी जहा प्यार मेरा दुश्मन बनगया
और दर्द मुझ पे मेहरबान हो गया...
ऐसे में यह प्यार को टोकु कैसे और इस दर्द को रोकू कैसे ?
Written by :Sudhir
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