नैना मेरे दिया बनके अँधेरी ज़िन्दगी में
मीलो तक मिला नहीं उनकी झलक
शायद वोह इतनी दूर थी जितना जमीन से फलक !
मखमली चेहरे पे हम मर मर के जी रहे है,
सोचते है की जी रहे है या मर रहे है !
उनके यादों का तकिया लेके,
चाहत का चादर ओढ़ कर सोने की कोशिश करते है ,
लेकिन निराशा की खौफ नींद ना आने देती है...
एक सपना खुशियों के झोके की तरह आया ,
जिसमे मैंने खुद को उनके संग पाया !
लेकिन ये झोका आँखे खुल ते ही
धोका बनके इतराके गुम होगया ...
और दिन बा दिन जलके पिगल रहा है लेकिन,
फिर भी अकेलापन ज़िन्दगी को निगल रहा है !
फिर से इतना अँधेरा चागाया है की ,
मेरा साया भी मुझ से छूट गया है.........
Written By:Sudhir
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