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Thursday, June 3, 2010

तलाश

नैना मेरे दिया बनके अँधेरी ज़िन्दगी में
उनको ढूँढने लगी है
मीलो तक मिला नहीं उनकी झलक
शायद वोह इतनी दूर थी जितना जमीन से फलक !
मखमली चेहरे पे हम मर मर के जी रहे है,
सोचते है की  जी रहे है या मर रहे है !

उनके यादों का तकिया लेके,
चाहत का चादर ओढ़ कर सोने की कोशिश करते है ,
लेकिन निराशा  की खौफ नींद ना आने देती है...
एक सपना खुशियों के झोके की तरह आया ,
जिसमे मैंने खुद को उनके संग पाया !
लेकिन ये झोका आँखे खुल ते ही
धोका बनके  इतराके गुम होगया   ...

दिल मोम बनके दिया जलाके ढूँढ रहा  है ,
और दिन बा दिन जलके पिगल रहा  है लेकिन,
 फिर भी अकेलापन ज़िन्दगी को निगल रहा है !
फिर से इतना अँधेरा  चागाया है की ,
मेरा साया भी मुझ से छूट गया है.........

Written By:Sudhir

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